मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

दर्शन






ऐ मौसम ,
तु  खूब बिगड़ 
सर्दी तु,  और बढ़ 
ओले गिरे,
घिरे रात 
या फिर झमाझम बरसात ।

चाहे रख तु खुले किवाड़, 
हो रौशनी या अन्धकार 
धुप खिले, 
या लू चले 
मन में अब नहीं कोई बात 
लेके चले हम कई सौगात ।

यादो के नाज़ुक मोड़ पर 
हमारे दरमियान 
क़तरा  क़तरा 
मंद मंद 
आत्मीयता 
मनुष्यत्व 
हिला के अंतर्मन 
ले लिया जब रुखसत
तब जाना 
क्या होता  कुदरती दर्शन ।
तब जाना 
क्या होता  कुदरती दर्शन ।।

- निवेदिता दिनकर 



बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

प्यारी रोज़ी के लिए समर्पित ....



वक़्त एक बार फिर थमा, तो क्या हुआ .....
सुकून और आह्लाद जो  तुमने बिखेरी ....
यथेष्ट इतना
बार बार  कुमकुम ऐ कांति से सींचते रहेंगे
यादों में तुम्हे आहट देते रहेंगे  ।।

- निवेदिता दिनकर 

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

अंजाम




एक बार फिर मोहब्बत के अंजाम पर रोना आया .....
दिल तो रोया पर दर्द को भी रोना आया ।।

कितना यकीं था अपनों  पर 
हर ऒर ख़ुशी और खुशबू की बौछार 
तन मन में फुहारों का  लेप 
छौना सी  चंचलता
लहराती हुई बांसुरी 
चहुओर अलमस्त की बयार 
कितना यकीं था अपनों  पर ....

सहसा आस्था हुई चोटिल 
अवसर से खाई मात 
प्यार हुआ स्तब्ध 
जंजीरों ने फिर एक बार 
किया उसपर घात 
इतनी निष्ठुरता 
यत्र -तत्र  नीरवता 
कुम्हलाया यथार्थ 
तोड़ा जब  ऐतबार 
हाहाकार  हाहाकार 

एक बार फिर मोहब्बत के अंजाम पर रोना आया .....
दिल तो रोया पर दर्द को भी रोना आया ।।

- निवेदिता दिनकर  

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

प्रवाह





ऐसा क्यों लगने लगा 
ज़मीं  थमने लगी 
आसमां बुझने लगा 
गति नहीं रही 
दम निकलने सा लगा 

चंद  अफ़सोस लगे झकझोरने  
मन भी लगा सिसकने 
दर्द बयान से होने लगा बाहर 
बेबसी ने कर लिया  घर 
घुटने लगा शरीर 
तन  मन सिहर  

मगर बहना तो पड़ेगा 
तप तप  के जीना तो पड़ेगा 
कठोरतम  हो होकर
सहना  तो पड़ेगा 
प्रवाह को हमसफ़र
हमसफ़र को प्रवाह 
बनाना तो पड़ेगा ।
बनाना तो पड़ेगा ।।
बनाना तो पड़ेगा ।।

- निवेदिता दिनकर   

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

अज़ब जिंदगी



ज़िन्दगी के लाजवाब रंग ढंग 
कहीं दकियानूसी 
तों कहीं बड़प्पन 
कहीं मायूसी 
तों कहीं अपनापन 
कहीं कटाक्ष 
तों कहीं भोलापन
ज़िन्दगी के लाजवाब रंग ढंग 

मज़ा खूब आता  है जीने में 
कहीं हल्का फुल्का 
तों कहीं भारीपन 
कहीं कट्टरपंथी
तों कहीं नरमपन
कहीं असलियत 
तों कहीं स्वप्न.......
ज़िन्दगी के लाजवाब रंग ढंग 

अरे ! अरे ! यह क्या 
ज़िन्दगी है ही ऐसी 
कहीं महा जीवन !
तों  कहीं  रुदन क्रंदन !! 
ज़िन्दगी के लाजवाब रंग ढंग ||

- निवेदिता दिनकर

नटखट यादें


जब पीछे लौटने को कहे यादें |
सताए खूब ....
मांगे फरियादे ....
चीखे चिल्लाये ,
मधुर वह वादें |
जब पीछे लौटने को कहे यादें | |

वह सोच ,वह समझ 
कितना मासूम ... 
कितना  नासमझ ....
वह भब्यता,
वह रौनक ,
जाने न जाने.... 
कितना मनमोहक |
जब पीछे लौटने को कहे यादें | |

काश ! मैं लौट पाती ,
खूब चिपटती....
और चहकती ....
उस पेड़ को कभी न छोडती ,
य़ू ही तैरती , 
य़ू ही फिरती ....  
घर से आँगन तक ....
आँगन से घर तक |
जब पीछे लौटने को कहे यादें | |

- निवेदिता दिनकर

रविवार, 3 फ़रवरी 2013

जज़्बात


क्यों खदेड़ा जाता सरेबाज़ार  ...
क्यों निचोड़ा जाता सर्पाकार ...
हर पल गिराना 
वेदना देना ....
पाषाणहृदयता ...  
क्या यही  मेरा  सार .....

हैरान सी  ,परेशान सी ..
कुछ ढूँढती हुई सी ...
रात भर सोचती रही ..
आँखे सूजाती रही   ...
पता है ,सब पता है  ....
नहीं है कोई पार 
क्या यही  मेरा  सार .....

तमाशा ही तो हूँ यारों ...
मुखौटा लगा के .....
फिर लगी मुस्काने ...
चहकने और चहकाने .....
गाने और बजाने .....
जज़्बात  यूँ  ही फिरते रहे ..
फिर एक बार ....
क्या यही  मेरा  सार .....

- निवेदिता दिनकर 

शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

अकेली चली

अकेली चली 
अकेली चली 
चंचल मन
अनजान पथ
तमाम राही
कांटे शत शत
लिए स्वप्नों की डली
अकेली चली
अकेली चली

तीखे मिजाज़
अंदाज़ भरपूर
कोशिश अपार
लम्हा बदस्तूर
लिए हौसलों की फली
अकेली चली
अकेली चली

शाम ऐ झोका
तेज़ रूप
कदम ऐ चाल
मत रुक
लिए सुकूनो की कली
अकेली चली
अकेली ही चली ....



- निवेदिता दिनकर