शनिवार, 25 मई 2013

मेरा मन



तटिनी सी किलकारी करती फिरती  ,
सजाकर आसमानी बादल  नृत्यशाला । 
मुग्धता लिए  मेरा बंजारा मन ,
जैसे स्पंदन में डूबी चपल हाला ॥  

- निवेदिता दिनकर 




6 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आपके कमेंट के लिए धन्यवाद एवं ब्लॉगपधारे और कुछ अपने कीमती वक़्त दिए ....शुक्रिया ।

      हटाएं
  2. निवेदिता : गागर में सागर [ सागर में हाला ]..... :)- अभिनंदन...

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह....
    बहुत सुन्दर.......

    अनु

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. यूँ ही स्नेह बनाए रखिएगा , अनु जी.........

      हटाएं