सोमवार, 29 जुलाई 2013

जैसे कोई किरदार

ज़ेहन में जुस्तजू
झीनी सी तृषा लिए …. 
कैसे कैसे नाजुक मोड़ 
कभी सावन भादों में सूखे रहना 
तो कभी बेचारा बेरंग फागुन 
ऊबड़ खाबड़ हो 
या बीजुरी सी जगमग, 
कब मैं समाती चली गई …
होके बेक़रार 
जैसे कहानी की कोई किरदार | 
जैसे कहानी की कोई किरदार ||  

अवहेलित हुई 
व्यथित हुई 
दे न सकी दलील सही ...
कतरा कतरा 
बावड़ी मेरी 
सकुचाती रही 
सिमटती रही 
कब मैं लहराती चली गई … 
होके बलिहार 
जैसे कहानी की कोई किरदार | 
जैसे कहानी की कोई किरदार ||

सुलग रही हैं तमन्नाऐ, 
पिघल रही धडकनों की चादर 
फिरकनी बन 
फिरती रही... 
कितने गिरह 
कितनी चुप्पी 
कब मैं ढाकती चली गई …   
डूबके बारम्बार 
जैसे कहानी की कोई किरदार | 
जैसे कहानी की कोई किरदार ||  

-  निवेदिता दिनकर 

सोमवार, 15 जुलाई 2013

यादें


इस हसीन रात की बात ही कुछ और,
टिपिर टिपिर बूंदों की मस्ती ,
धीरे धीरे पत्तियों से ढलकना 
ज़मीन पर आते आते बिछ जाना ....
जाने कितनी मखमली यादों का ताजा होना,  
जैसे कोई प्रेयसी अपने ही धुन में ......
राज़ समेटे,
लुकाछिपी का दौर चलाये । 

गभीर नितान्त  है श्याम    
खोई खोई  सी दास्ताँ .....  
न जाओ  देकर वास्ता ,
सुन पाऊँ धड़कन अपनी  
फिर से गरम साँसों का एक होना 
पनपने की खुशहाली इतनी 
जाने कितनी  सिहरनों भरी आगोश का .... 
खामोश छिटकना । 
जैसे कोई प्रेयसी चटक रंग में ......  
अहसास लिपटे 
रूह तक फुहारें बरसाए । 

  

 - निवेदिता दिनकर