शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

वृष्टि


तुम्हें याद करते हुए … 

वृष्टि के बूँदों की ढलक,
चमकीली रेशम सी झलक।  
फूल  पत्तियाँ बनी बतख, 
भीगी भीगी मैं अब तलक ॥  

- निवेदिता दिनकर 

2 टिप्‍पणियां:

  1. खूब भिगो.....नहा जाओ !!
    यादों की लड़ियाँ पिरो लो.....

    अनु

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (19-07-2014) को "संस्कृत का विरोध संस्कृत के देश में" (चर्चा मंच-1679) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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