गुरुवार, 18 सितंबर 2014

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एक बार फिर …  
हरी घास मुरझाई पड़ी है,
पंखुरियाँ धीरे धीरे झड़ने लगी है, 
देखो, मौसम भी अब मौसमी नहीं रहा
ठण्ड भी ज्यादा कहाँ पड़ती है ?   
सबकी सब गौरेया न जाने कहाँ चली गयी  … 
इलाहाबादी अमरुद का पेड़, 
ओह, सूख गई टहनियाँ  
और 
कच्चा अमरुद, मीठा भी नहीं रहा …  
यह 
रुआंसा आम का पेड़.…  दो एक साल रूक रूक कर फल देता,   
अरे हाँ, वह देखो जंगली गुलाबी गुलाब का झाड़,
रात की रानी,
गेंदे के फूल और पत्तिया, 
किसी को चोट लगती 
बस पत्तियों को रगड़कर लगा देते … 
खट्टी मीठी इमली,
लाल इमली भी, 
इक्कड़ दुक्कड़, टिप्पी टिप्पी टॉप 
तपती धूप की मीठी तपन  …   
बिजली के जाने पर खुश क्यों होते ? 
डायना, फैंटम, मैंड्रेक्स का इंद्रजाल  
साथ नमक अजवायन के परांठे का थाल  … 
सुर्ख नारंगी आसमान
सा खुल कर,
दूर तक 
जी जाना  … 

आज कहाँ कहाँ से गुजरी ... 
एक बार फिर …  

- निवेदिता दिनकर  

तस्वीर मेरे द्वारा खींची गई , मदुरई के एक फार्म में जहाँ नारंगी शाम मिली  ...

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