शनिवार, 29 नवंबर 2014

मकड़ जाल


वर्तमान के गर्भ से … 
बस सोचती रह जाती हूँ, अपने काम काज के बीच, जैसे ही निपटाउंगी, वैसे ही कुछ लिख डालूंगी । 
पता नहीं, कब से। 
आज कल पहले से ज्यादा जीने की कोशिश करती हूँ और करती भी रहूंगी। सारी बातें एहसासों पर खूब है, जिंदगी को रवानी देने के लिए। पर कहीं न कहीं बाहर निकल कर आ पाने में असमर्थ  हूँ । कई बार दिशा भ्रम सी नौबत कह कर तसल्ली भी  दे देती हूँ । 
मिथ्या ही हँसती हूँ, मगर यह सूनी आँखे हमेशा धोखा दे जाती है। काजल लगाकर सुन्दर कजरारी भी किया तो थोड़ी देर साथ दिया पर उन नमकीन पानी ने साथ छोड़ दिया जो आँखों से उछल कर बाहर आ गए। थोड़ा ठहर जाते, तो क्या बिगड़ जाता।
पीछे छूट रहे पल असहाय से दूर होते जा रहे है। मन की नदी सूख न जाए कहीं। समय का जानलेवा जबड़ा कभी भी टूट पड़ सकता है।     
रोज़ ढेर सा लिखने को। उँगलियों पर गिनती हूँ और मुस्करा देती हूँ। शीत के बाद बसंत, फिर गर्मियां और फिर बरसात, निरंतर बैचेनी तो बनी रहेगी।         

- निवेदिता दिनकर 
  २९/११/२०१४ 
फोटो क्रेडिट्स - उर्वशी दिनकर 

मंगलवार, 18 नवंबर 2014

आखेट


दिनदहाड़े, 
या रात का सन्नाटा  … 
किवाड़ों के पीछे, 
या खुला आँगन … 
चकाचौंध रौशनी,  
या बंद दरवाज़ा …   
स्कूल, 
कॉलेज, 
दफ्तर,
अस्पताल  ... 
असीमित दायरा ...

भेद दो,  
फाड़ दो, 
क्योंकि 

तुम मेरे आखेट हो।   
सिर्फ आखेट॥ 

- निवेदिता दिनकर
  १८/११/२०१४  

फ़ोटो क्रेडिट्स - उर्वशी दिनकर "बरसात की एक रात " लोकेशन - दिल्ली 

बुधवार, 12 नवंबर 2014

अंतर्नाद


सुनकर मेरे हसीं ख्वाब …
मखमली साया,
आँखों की प्यास,
कमलिनी कामना,
मन की परी,
बोली …
ले चल दूर कहीं,
आम बागानों
से होते हुए,
दरिया से सटे हुए …
झिलमिल तारों
के छाँव,
तरुण यशस्वी भाव …
बस
मैं
और
मेरा अंतर्नाद।
लिए
रजनीगंधा सी सौगात॥
तो
ख़्वाबों की झोली यूँ ही सजती रहेगी …
यूँ ही सजती रहेगी …

- निवेदिता दिनकर

फोटो क्रेडिट्स - उर्वशी दिनकर " झिलमिल "

सोमवार, 3 नवंबर 2014

पारिजात





"पारिजात"


बचपन से 'शिउली' से संपर्क है, सुबह उठकर जब चुनती थी तो कुछ रिश्ते भी बुनती थी और अब प्रगाढ़ता की ओर ...
कुछ रंग और खुश्बू बिखेरने की कोशिश किया है हमने भी, शुक्रिया शुक्तिका प्रकाशन !!


निवेदिता दिनकर