गुरुवार, 30 जुलाई 2015

कलाम सर



कलाम सर,
पहली बार ऐसा हुआ है , जब हर धर्म की मानव जाति , हर पार्टी का राजनेता, कोई भी आयु वर्ग, स्त्री, पुरुष , बच्चे, शिल्पकार, साहित्यकार , डॉक्टर , वैज्ञानिक या कुछ और, प्रत्येक जन मानस , आपके लिए दिल से रोया है। 

कहते है, अगर जानेवाला घर गृहस्थी वाला है, तो उसके लिए उसका पूरा परिवार शोकाकुल होता है, परन्तु आप तो ऐसे जादूगर निकलेप्यार के इतने धनी निकले जिसने पूरे राष्ट्र को एक सूत में बाँध दिया। 

इस सन्दर्भ में एक वाक़या याद आ रहा है । 
माँ शारदा ने एक बार स्वामी राम कृष्ण परमहंस से कहा कि मुझे अफ़सोस है कि मुझे माँ कहनेवाला कोई नहीं है। इस पर स्वामी जी कहते है कि इस बात की आप बिलकुल चिंता नहीं कीजिये, आपको पूरा जगत माँ पुकारेगा।

सर, आपको मेरा शत शत प्रणाम । आज, कल और हमेशा      

निवेदिता दिनकर   
 30/07/2015

नोट : पेंसिल स्केच की एक अदना सी  कोशिश 

सोमवार, 27 जुलाई 2015


अब बस !




चलों न कहीं, 
बहुत दूर ...

देखों न सही, 
वह नारंगी धधकती शाम...

कब से बुला रही  … 
और 

तुम हम 
एक दास्ताँ के कोख़ में   … 
हमेशा के लिए ...

कि
अब बस! 
हमें अजन्में ही रहने दिया जाए!!   

-  निवेदिता दिनकर   
    27 /07/2015

फोटो : मेरे द्वारा कालका ट्रैन से लिया गया …     'एक धधकती शाम'     

शनिवार, 25 जुलाई 2015

भ्रम



सब कहते है,
आज कल प्रेम जैसा कुछ नहीं
सब भ्रम... 

मग़र ख़ामोशी से 
तुम मुझे भ्रम में रखो !
मैं तुम्हें प्रेम में रखूँगी !!

- निवेदिता दिनकर 
  25/07/2015
फोटो क्रेडिट्स दिनकर सक्सेना , लोकेशन भीमताल झील के किनारे 

गुरुवार, 16 जुलाई 2015

सहोदरी सोपान -२ पुस्तक का लोकार्पण






गौरवान्वित हूँ ...


क्योंकि 'भाषा सहोदरी हिंदी' द्वारा १२ जुलाई को काव्य गोष्ठी एवं १३ जुलाई को सहोदरी सोपान -२ पुस्तक का लोकार्पण की मैं प्रतिभागी व साक्षी रही। ख़ुशी की बात तो है जब अनोखी बातें, अपनत्व भरी मुलाकातें हुई हो । 


जब फेसबुक वाल से मित्रगण जमीनी हकीकत पर रूबरू होते है तो जज़्बातों का आदान प्रदान होता ही है और सच मानिए हुआ भी। 

नामचीन साहित्यकारों को सुनना और फिर उनसे बातचीत कर, प्रफुल्लित महसूस कर रही हूँ । शायद इसलिए और भी क्योंकि मेरे लिए यह सब रोज़मर्रा की चीज़ तो है नहीं तो क्यों न पलों को जीते रहे और खुद के साथ जीवित रखे … 
आमीन 


- निवेदिता दिनकर
  16/07/2015

शनिवार, 4 जुलाई 2015

देहरादून





कुछ दिनों पहले की बात है।  मैं बेटे के पास देहरादून गई हुई थी। देहरादून अपने आप में खूबसूरत शहर के साथ मिज़ाज़ का भी नायाब शहर है । गर्मियों में सुखद मौसम का मज़ा और प्राकृतिक ठंडक हो तो, बस और क्या चाहिए !!

यूँ ही अकेले नए शहर में घूमने का आनंद ही कुछ और है। लम्बे लम्बे दूर तक चलते रास्ते, आकाश चूमते पेड़,  न किसी से जान पहचान , न किसी की दुआ सलाम , बस अपने मन से निकल जाओ। जहाँ मर्ज़ी रूककर किसी अजनबी से थोड़ा उस एरिया का आईडिया ले लेती थी तो  कभी किसी बच्चा बौद्ध भिक्षु को देखकर उनके साथ सेल्फ़ी लेती तो कभी किसी फल वाले के साथ फल खरीदने के बहाने बातचीत,  एक अजीब सी आत्म संतुष्टि सी होती थी। 

खैर, उस दिन भी मैंने सोचा, चलो, जाकर उस फल वाले से बतियाते है और मैं निकल पड़ी। आम का मौसम है तो क्यों न आम खरीदा जाये और फिर उस फल वाले से बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। 'क्या आप मुसलमान है' फल वाले मियां साहब ने पूछा तो मैं चौंकी, फिर मुस्करा दी। मैंने पूछा ' क्यों '। 'मुझे लगा आप हमारी बिरादिरी की है । आपको देखकर ऐसा ही लगता है।' बड़े कॉन्फिडेंस के साथ मियां जी बोले  … 

मैंने भी सोचा, ठीक ही तो है । तपाक से बोली 'रूह से' और दोनों ज़ोर से हँस पड़े। 

- निवेदिता दिनकर 
  ०४ /०७/२०१५    

बुधवार, 1 जुलाई 2015

कीचड़ में फुटबॉल



निराली चीज़ों से सुसज्जित बंगाल की एक अजब निराली बात, बारिश के मौसम में कीचड़ से सने फुटबॉल खेलने की सनक, भी है। 

यूँ ही राह गुजरते, जब झमाझम बारिश में कीचड से सने मैदान में  खेलते हुए कीचड से लथपथ लड़को को देखा तो उनका जज़्बा जूनून जोश ही नज़र आया। पूरा का पूरा शरीर कीचड में सना था और दबा के फुटबॉल खेला जा रहा था। बिलकुल बेपरवाह बेतकल्लुफ दीवानों की तरह। खड़े होकर कुछ देर भीगकर उनको देखना बहुत अच्छा लगा। एकदम निश्छल स्कूली बालक से प्रतीत हो  रहे थे।   

असल में एक बात और भी है कि फुटबॉल बंगाल में धर्म के तौर पर लिया जाता है और बादल, बिजली, बरसात कुछ भी, इस महान खेल के बीच नहीं आ सकती और कदापि आनी भी नहीं चाहिए।  ऐसी ही कुछ चीज़ों को आने वाले जेनेरेशन तक लेकर  जाना भी तो है क्योंकि कुछ दाग सचमुच बहुत अच्छे होते है, है न …

अब माँ घिसती रहे रिन, तो क्या !!     

- निवेदिता दिनकर     
  01/07/2015     
  
पहली तस्वीर - गूगल से साभार 
दूसरी  तस्वीर- मेरे कैमरे से 'भीगी रुत', लोकेशन कोलकाता