बुधवार, 15 नवंबर 2017

चितकबरी








रंगों से छेड़छाड़ करना , आत्मिक हो जाना , आत्मा से  मिलन हो जाना या एकाकार ...         | 
खूबसूरत थेरेपी और अपनेआप घाव भरने लगते हो, जैसे | एक प्रकार का सेडेटिव है या एनाल्जेसिक यह तो नहीं पता , पर नशेमन हो जाना होता है | 
जब दिमाग़ खाली हो तो रंग भरो | 
और 
जब दिमाग में रंग हो तो खाली करो | 

बेसुध होना, तब्दीलियाँ पाना , या चितकबरी और चितकबरी ...  बेमालूम | 

 पिछले पाँच दिनों में रंगों से खेलने के बाद का दिलचस्प और सुकून से भरा नज़ारा | आइये , मेरी रंगों की गलियों में गुनगुनाते हुए गुज़रिये। ... 

ओ मेरे दिल के चैन 
ओ मेरे दिल के चैन चैन आये मेरे दिल को दुआ कीजिये ... 

अपना ही साया देख के तुम जाने जहाँ शर्मा गए 
अभी तो यह पहली मंज़िल है, तुम तो अभी से घबरा गए  
मेरा क्या होगा, सोचो तो ज़रा ... 

हाय ऐसे न आहे भरा कीजिये 
ओ मेरे दिल के चैन ... 

सचमुच , यह दिल के चैन ही तो है | बेतहाशा पागलपन इस ज़िन्दगी में , रंगो के ज़रिये कितना संपन्न करती है | कभी नहीं जाने देना यह नज़र , ज़िन्दगी की शाम आ जाए पर इन रंगों की शाम कदापि नहीं | 
मोहब्बत है तेरे से, ऐ रंग | 
शामिल कर ले तेरे में, ऐ रंग ||   

- निवेदिता दिनकर 
  15/11/2017

तस्वीरें : आओ , मेरी गली ...

सोमवार, 25 सितंबर 2017

रईस







#रोडडायरीज

कल की बात है |
वैसे कोई ख़ास बात भी नहीं 
एकदम साधारण सी, समझ लीजिये ...   

महज बीस साल का, 
वह बालक 
कुछ भी, कैसा भी, कहीं भी काम करने को तैयार  

बस, दिहाड़ी मिल जाए  ... 

पूछा, कुछ पढ़े हो ?
उसने मेरी ओर देखा और चेहरे पर तिरछी मुस्कान तैर गई 

मैं समझ गयी. 'जवाब'...  

पूछा, नाम क्या है? 
एकदम तपाक से बोला ... मुसलमान हूँ | 
पूछा, तो?
नाम नहीं रखे जाते ?

अब थोड़ा सहज हुआ 
"रईस"

माहौल को थोड़ा हल्का करने के लिए पूछा , रईस फिल्म देखी ?
शाहरुख़ पसंद है ? पता है, कितना स्ट्रगल किया है?
रातों रात कोई चीज़ नहीं मिलती | मशक्कत करनी पड़ती है | 
"हाँ" में सर हिला देता है |   

कहता है, मम्मी और बड़े भाई सब्जी बेचते है | 
पापा एक्सपायर हो चुके है| 
घर की हालत अच्छी नहीं है  ... 

कोई बात नहीं, हर संडे मेरे पास दो घंटे आया करो 
बुक्स कॉपी की फ़िक्र मत करना। ... 

बड़े ऐटिटूड के साथ बोला , 'इतना तो है' | 

मैंने बोला, परफेक्ट ... 

फिर बोलता है, पापा अगर जिन्दा होते, माँ घर में रहती, तो मैं क्यों स्कूल नहीं जाता ?

सच ही तो है | 
लेकिन, उस जैसे  अनेक मुरझाऐ बच्चों में जान फूंकना है, सो लगी हूँ और लगी रहूँगी | 

- निवेदिता दिनकर  

तस्वीर : उर्वशी दिनकर 

रविवार, 24 सितंबर 2017

रजनीगंधा बनाम रजनीगंधा



फूलों की दुकान थी |
मेरी आँखे जिसको ढूँढ रही थी , वह नहीं था तो सोचा जो दस ग्यारह साल का लड़का सामने खड़ा है, उस से ही पूछ लेती हूँ , "रजनीगंधा है ?"
जवाब था " रजनीगंधा तम्बाकू "
मुझे चुप देखकर, बोला ," बराबर में जो पान की दुकान है, वहाँ मिल जाएगी |"
दिमाग में सन्नाटा छा गया ...
बाद में पता चला , उसे रजनीगंधा फूलों के बारे में सचमुच पता नहीं था |
अभी भी सकते में हूँ |

- निवेदिता दिनकर 
  24/09/2017




बुधवार, 20 सितंबर 2017

प्रेम


পাগলা হাওয়া 
মাটির ছোঁয়া ... 
রজনীগন্ধার স্নিগ্ধ  সুগন্ধ 
চাঁদের বোনা ... 
আঁচলে নদী 
মুঠিতে আকাশ  ... 

শুনছো,

 হৃদয়ে একটি প্রেম কাহিনী ভাসছে  ... 

-  নিবেদিতা দিনকর  
    18 /09 /2017 

उन्मादी हवा 
मिटटी में लिपटी  ... 
रजनीगन्ध की भीनी सुगंध 
चाँद का बुना ... 
आँचल में नदी 
मुठ्ठी में आसमान 

सुन रहे हो,
 मर्म में एक प्रेम कहानी तैर रही है  ... 

- निवेदिता दिनकर 
  १८/०९/२०१७ 

प्रिय मित्रों, 
अपनी मातृभाषा बांग्ला में लिखने की कोशिश किया है और साथ में हिंदी में अनुवाद भी | आशा है, आप अपनी टिप्पणियों से मुझे उत्साह और न्याय देते रहेंगे | 

आपकी मित्र 

बुधवार, 13 सितंबर 2017

तेरे इश्क़ में ...


प्रिये, 
तुम इतनी क़यामत ढ़ाओगी,
इस क़दर कहर बरपाओगी ... 
कि  
तुम पर नज़्म लिखे बिना रहा नहीं जा सका | 

अब 
इस अदा बलखाना ,
कोमल नाज़ुक़ बदन की स्वामिनी होना ,
छरहरी,  
स्पर्श मात्र से 
बिजली कौंध जाना ... 
सब उस ख़ुदा की नेमत ही तो है |   

हाये ,
रफ़्ता रफ़्ता  ...  
आबोहवा भी 
तुम से  
और 
कुदरत का करिश्मा 
भी  ... 

जिस सांचे ने 
बेमिसाल तराशा ,
जिस ग़ज़ल ने 
जान फूँका , 
कोई भी 'मक़बूल' फ़िदा होने से अपने को नहीं रोक सका | 

ऐ मीठे स्वाद धारिणी ,
ऐ पतली कमरिया नु , 
ऐ बेलनाकार 
'लौकी'

पहले 
तुम,
फिर 
तु ,
फिर  
तेरे इश्क़ में  ... 
' ग़ुलाम ' 
बन गए  ...  

- निवेदिता दिनकर 
  १३/०९/२०१७ 

तस्वीर : मेरे बागीचे की शान 

सोमवार, 11 सितंबर 2017

मंजर


रेज़ा रेज़ा हुए जा रहे है | 
देखो कैसे जिये जा रहे है | 
अजीब मंजर है मिरे मुल्क का  
रेत को भी रेते जा रहे है ||  

- निवेदिता दिनकर 
  11/09/2017

तस्वीर :  " सुबह "
यह बच्चे एक प्रतियोगिता के तहत 

रविवार, 10 सितंबर 2017

हैल सितम्बर ...




सितम्बर शुरू हो गया है | 
कुछ सालों से सितम्बर पर ज्यादा ही ध्यान जाने लगा है | 
वैसे मेरी ज़िन्दगी के पहले नौ महीने (गर्भ ) से लेकर अब तक के सारे ग्रीष्म वर्षा शीत मंगल प्रदान करने वाली, मेरी शख्सियत सँवारनेवाली, महानों में महान आत्मा, मेरी "माँ " का जनम दिवस पड़ता है | २६ सितम्बर ... 

वैसे ' माँओं ' को कहाँ कब शब्द लकीरें थ्योरम चाँद तारें नाप पायें है ? विशेषण विशेषज्ञ तो बेचारे बस यूँ ही ख्याली बेख्याली हलवा पूरी पुलाव पकाते रहते है |  

मगर सितम्बर को और खूबसूरत, और पाक, और नमकीन बनाया एक और 'माँ ' ने, वह है "मेरी सासु माँ" | उनके जैसा कोई नहीं | जी, यह सच है | सारी कायनात एक ओर और मेरी सासु माँ एक ओर | जो कुछ दुनियादारी , नौकरी, आटे दाल का भाव , सीखा/ गुना, सब उन्हीं से | मेरी सहेली भी मेरी गार्डियन भी |        
उनका भी आगमन इसी सितम्बर में , २४ सितम्बर ... जनाब | 

वैसे तो इतना ही काफी था , हे सितम्बर | 

पर एक सितम हुआ, जब  २९ सितम्बर, २०११ में जब बेबात,  "बापी" ने इस विचित्र दुनिया से रुखसत लिया, तब सारी ज़िन्दगी का सार एक ही झटके में समझ में आ गया | 
एकदम दर्ज़ा बेटी से माँ का हो गया | यानि अब 'माँ ' बेटी बन गयी और माँ की "माँ " हम | 
जो बेटी "आदोरेर टॉकी"( टॉकी मेरा डाकनाम है ) "मामोनी " हुआ करती थी , आज/अब है माँ | 

मेरे बापी को बर्फी बहुत पसंद थी /है | तो उनके लिए बर्फी उनके नाम से अमूमन मंगवाती रहती  
हूँ | मगर चूँकि  बापी ने अपने जीवन के सारे कार्यकलाप रेलवेस को समर्पित किए और रेलवे ने उनको रखा बरेली
नामक जंक्शन में, सो, "बरेली के बर्फी " के मुरीद | पिक्चर नहीं , मिठाई | 
जी, सही पढ़ा, बरेली की बर्फी, एकदम खरी, बेबाक, स्वाद से भरी | 
काफ़ी कुछ मेरी तरह  ... 

कितने भी तू कर ले सितम 
हँस हँस के सहेंगे हम 
ये प्यार ना होगा कम 
सनम तेरी कसम ... 

पिक्चर अभी बाकी है , मेरे दोस्त ... 

- निवेदिता दिनकर 
   १० /०९ /२०१७ 
 
 तस्वीर : शादी के पचासवें सालगिरह में  बापी के साथ की आखिरी तस्वीर, २०११   

बुधवार, 30 अगस्त 2017

अचेतन






"काली मछली पीछा ही नहीं छोड़ रही थी | 
तभी मुझे किसी ने वहाँ से हटा कर मेरे पुराने मित्रों के पास छोड़ दिया | 
मुझे वापिस आकर बहुत अच्छा लगा | 
मैं ख़ुशी के मारे रोने लगी | 
लेकिन यह क्या? मेरे आँखो में पानी तो था, मगर मेरे किसी दोस्त को पता ही नहीं चल पाया  कि मैं  रोई भी हूँ क्योंकि क्योंकि मेरे चारों ओर पानी ही पानी था |" 

नारंगी मछली सोचते सोचते सुबकने लगी | 
काश ...

- निवेदिता दिनकर 
  30/08/2017

तस्वीर : आँखों सुनी कानों देखी 

शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

शायद ही




चारों तरफ लहू 
और सब 
एक दुसरे का लहू पी रहे 
'वैम्पायर'  ...  

सब सिर एक तरफ 
देह से अलग 

मान लिया है देह ने भी 
कि वह इस में खुश है | 
जरा सी भी आपत्ति नहीं| 

राक्षसी प्रवृत्ति 
की 
प्रथा आज 'डिमांड' में जो है|  

शर्म से सूरज भी उग नहीं पाता 
निढाल हो जाता है | 
और चाँद तारें  ... 
मुँह छिपाये रात का सहारा लिए 

कहते है ,
फिर समुद्र मंथन होगा 
और क्षीर सागर को मथ कर 
अमृत पान 
लेकिन,

 लेकिन
 विष निगलने

कोई नीलकंठ ... 
अबकी बार 
शायद ही आये  ...  
- निवेदिता दिनकर 
  25/08/2017

फोटो क्रेडिट्स : मेरी नज़र "मंथन के लिए तैयार समुद्र ", लोकेशन : मंदारमनी , पश्चिम बंगाल   

मंगलवार, 22 अगस्त 2017

मृगमरिचिका

रंगों ने 
रंगों को 
रंगों से 
रंगों के 
रंगों द्वारा 
रंगों के लिए 
रंगों का 
रंगों के 
रंगों की 
रंगों में 
रंगों पर 

रंग दिया  ... 

हे रंग! 
अरे रंग !!

- निवेदिता दिनकर
  22/08/2017

फ़ोटो क्रेडिट्स : मेरी नज़र , लोकेशन : डी एल एफ मॉल , दिल्ली 

शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

असाधारण लम्हें








यूँ तो यह मामूली सी ही बात है, लेकिन खासम खास मेरे लिए , मेरे अंदर की जान के लिए  ... 

पिछले दिनों लखनऊ जाना हुआ, राष्ट्रीय पुस्तक मेले में कविता पाठ हेतु  जो मेरे लिए तो हज़ार भाग्य की बात है, पर बोनस के तौर पर एक खुशखबरी और मिली कि बेटे की मीटिंग लखनऊ में १४ तारीख को होने से १३ को वह भी पहुँच रहा है | जानकर, बच्चों सी खुश हो गयी क्योंकि पिछले दो तीन महीने से नौकरी की वजह से वह घर भी नहीं आ पाया था | बस फिर क्या था , मैंने कहा , जिस होटल में तुम रुकोगे मैं भी वहीं रुकूँगी, इस बहाने एक दिन एक रात तुम्हारे साथ रह लूँगी | 

मैं दोपहर दो बजे लखनऊ पहुँची, चेंज किया और हम साढ़े तीन बजे तक वेन्यू पहुंच गए | कार में बेटे जी बोलते है , 'मम्मा , प्रैक्टिस कर लो, एक बार '| मुझे उसकी यह बात इतनी अच्छी लगी , फ़ौरन गाड़ी में ही शुरू हो गयी | उसने ख़त्म पर 'थम्ब्स अप' दिखाया, तो मैं बस ...  
 खैर, बेटा भी अपने नरसी मोंजी कॉलेज, हैदराबाद में मैगज़ीन कमिटी का एडिटर रह चुका है और एक ज़बरदस्त लाइब्रेरी का मालिक, जो उसके आगरा घर में सुशोभित है | बचपन की चम्पक, नंदन, टिंकल, अमर चित्र कथा से लेकर जैकी कॉलिंस, मारिओ प्यूज़ो , अल्फ्रेड हिट्चकॉक , Ayn Rand, एरिच सेगल, अमिश त्रिपाठी और भी कितनें सारे नाम | 

रात मुझे लखनऊ की स्पेशलिटी कबाब्स का जायका दिलवाने "रेनेसांस" भी ले गए और मैं बस आनंदित होकर बहती जा रही थी , लहरों से अठखेलियाँ कर ... 

 एक साधारण सी माँ के लिए इतने असाधारण लम्हें |     

और क्या चाहिए ...   

काँटों से खींच के ये आँचल
तोड़ के बंधन बांधे पायल
कोई न रोको दिल की उड़ान को
दिल वो चला..
आज फिर जीने की तमन्ना है
आज फिर मरने का इरादा है ,,,  


- निवेदिता दिनकर 
  18/08/2017

फ़ोटो : लखनऊ 

बुधवार, 9 अगस्त 2017

सुन विकास बराला,

सुन विकास बराला,

आज सब तेरे करतूत को थू थू कर रहे है| तु इतना तो अपडेट होगा ही | 
ब्रेकिंग न्यूज़ में जो तेरी फिल्म बन रही है, उस से तो तु वाकिफ़ है |  
और तेरी प्यारी माँ ... 

वह बेचारी अपने को कितना कोस रही है , शायद अपने को छुपाये छुपाये फिर रही हो | 
तुझे पैदा करने से पहले से लेकर अब तक की सारी बातें सोचती जा रही होगी | 
यह भी दिमाग़ में आ रहा होगा, कि, क्या ग़लती हो गयी उस से, कब तु इतना बीमार हो गया ? 
इतना ओछा हो गया, इतने  गर्त में गिर गया, कि लड़की देखी और विकृति आ गई| 
तेरी माँ, घर के और बहु बेटियों के बारे में भी सोचकर दुःखी हो रही होगी कि कहीं ऐसी हवस ने कहीं और भी ... इस ख्याल मात्र से उसकी रूह काँप गयी होगी | 

क्यों, आख़िर क्यों किया ?  उक्त घटना से एक शाम पहले, या सुबह, या एक घंटा पहले सब कुछ कितना ठीक था ... यह क्या कर डाला ?
सब कुछ, वह बेचारी माँ सोच रही है जिसका तुझे रत्ती भर भी इल्म नहीं, विकास | 

अब क्या करेगा ? क्या सोच रहा था, कि तु किसी ऐसे आदमी का बेटा है, और तु कुछ भी कर सकता है, कोई पाप कृत्य करेगा और बच जाएगा, 
तो 
सुन विकास     

अब अपने ही घर में घुट घुट कर मरणासन्न जीने के अलावा तेरे पास और कोई चारा नहीं क्योंकि 
बाहर हमारी पाठशाला तेरे इंतज़ार में है | 
अच्छा हाँ, हम दिन में, रात में, शाम में, दोपहर में, जब मर्ज़ी हो, जहाँ मर्ज़ी हो, आएंगे जायेंगे, और जो मर्ज़ी हो पहनेंगे |  

|| याद रखना, अगली बार तेरे घर में घुस कर मारेंगे ||    

- एक और वर्णिका    
  ०९ /० ८ /२०१७

नोट : यह एक खुली चिठ्ठी है और हर उस सिस्टम के लिए है जो बददिमाग, बेअदब , बेईमान है और उस पर नकेल कसने की सख्त जरूरत है | 
तस्वीर : मेरे द्वारा ,  ताजमहल के पास , आगरा  

गुरुवार, 27 जुलाई 2017

तेरे बिना





आज 'सिन्दूरी शाम' मासूमियत के रंगो में लिपटी ऐसे ज़मीन पर उतरी कि 
उसकी चमक उसकी रौशनी उसकी बंदगी, बेहाल कर गई |  

हुआ यूँ कि  सड़क पर विचरण करने वाले मेरे चार दोस्त , प्यारे श्वान, में से दो, अपने भोजन के लिए मेरे घर के सामने एकत्र हुए तो देखा देखी एक गाय माते भी आ पहुँची और फिर जम कर "पहले मैं " "पहले  मैं " का नारा लगाते हुए मिलजुल कर रोटी खाने लगें, पानी पीने लगें | 

डार्विन जी की थ्योरी सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट, स्ट्रगल फॉर एक्सिस्टेंस भी कामयाब दिख रही थी| 
नज़ारा बेहद दुर्लभ था, बिना उनसे सहमति लिए, खूबसूरत तस्वीर लूट लिए | 

दिल की ख़ुशी देख दिमाग सवालों में उलझ गोता लगाने लगा कि हम मिलजुल कर रोटी कब खाएँगे ?  

तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई
शिकवा तो नहीं, शिकवा नहीं, शिकवा नहीं
तेरे बिना ज़िन्दगी भी लेकिन
ज़िन्दगी तो नहीं, ज़िन्दगी नहीं, ज़िन्दगी नहीं
    
 - निवेदिता दिनकर 

  २७/०७/२०१७ 





मंगलवार, 25 जुलाई 2017

मुठ्ठी भर ...





कुछ बातों / खबरों से मैंने अपने अंदर अवसाद को उतरते महसूस किया है | वह खबर, हादसा , घटना कभी कभी मेरे अंदर इतना लाचारी भर देती है, कि मुझे अपने आप से ही कष्ट होने लगता है | जरूरी नहीं, वह घटना मेरे साथ या  मेरे अपनों के साथ घटी हो पर बस बेबस कर जाती है | 

ऐसे में गीतों या फिल्मों या अपनी पालतू डॉगी या कुछ और डॉगी जो सड़क पर घुमते है और लगभग पालतू नुमा से हो गए है से बड़ा सहारा मिलता है | 
कभी तो  हवा में ही कुछ भाव कच्चा पक्का उकेर देती हूँ और सुकून पा लेती हूँ | अब हर वक़्त कागज़ कलम तक पहुँचना कहाँ हो पाता है | 

माँ बताती है , बचपन में राह चलते कुत्ते के बच्चे , बकरी के बच्चें, चिड़ियों  के बच्चे घर में उठा लाती थी और माँ से ज़िद करती थी कि इनको पाल लो | 
आसपास के घरों में अब कहीं  मेरी बचपन वाली रज़िया आंटी नहीं दिखती , न ही पाठक आंटी , न ही गोयल आंटी न ही कुलवंत आंटी बल्कि आस पास जाति और मज़हब और सोच दिखती है  या दिखती है फॉरेन रिटर्न्ड या मर्सिडीज़/ बी एम् डब्लू वाली कोठी या ए सी/ विदेशी / स्वदेशी के मद से प्रदूषित होता वातावरण | 

ओह ,  कब तक ...     चलो एक बार फिर से ...           ~ ~ ~
 गुफा, नदी , झील , प्रकृति और प्रकृति  ...  
पाषाण युग कैसा रहेगा ??

बस, मुठ्ठी भर  ...  

- निवेदिता दिनकर 
  २५/०७/२०१७
फोटो : एक मुठ्ठी शाम, लोकेशन आगरा , ताज महल के पास 

शनिवार, 17 जून 2017

कवितायें








एक से बढ़कर एक 
कवितायें 
नायाब, बेमिसाल, असाधारण  ...   

प्रेम से भरी हुई 
ज़िन्दगी से लबरेज़ 
शहद में डूबी 
शहनाई को मात करती नवेली धुन जिसकी   
चिड़ियों की मासूम कलरव करती 
ग़ज़ल नुमा 
निष्कलंक
संपन्न

किसको पढ़े 
किसकी आरती उतारें 
प्रशांत महासागर से भी गहरें 
रुई मलमल से थोड़ी ज्यादा मुलायम 
आह जैसी चाह  ...  

वातानुकूलित कमरों से निकली 
कवितायें 
शायद ऐसी ही होती है !!

- निवेदिता  दिनकर
  १७/०६/२०१७ 


तस्वीर : तपती धूप तकती पेट 

शनिवार, 10 जून 2017

मेरी नायिका - 8




एक मेहनतकश खुद्दार माँ की सफलता यूँ हासिल हुई जब उसकी मेहनती बुद्धिमान मेधावी बेटी यू पी बोर्ड 2017 की बारहवीं में फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथमेटिक्स लेकर ७५ % अंक से उत्तीर्ण हुई |
ख़ास बात यह कि इस बेटी की माँ कोई स्कूल कॉलेज कभी नहीं जा सकी और मेरे घर के काम काज में पिछले कई सालों से हाथ बटांती है | पिता इ रिक्शा चलाते है | यू पी बोर्ड की दसवीं में ८५ % पहले ही ला चुकी है |
इस हुनर और जूनून को हमारा सलाम मिलना ही चाहिए |
मेरी और दिनकर की अपेक्षा है कि मैं इस रानी बेटी " रेणु कौर " को आगे चलकर सिविल सर्विसेज में जरूर बिठाऊँ | आगे जो रब राखा ...

 - निवेदिता दिनकर 
   १०/०६/२०१७