गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

इंतेज़ार


सहमे से रहते है, जब यह दिन ढलता है ...
क्यों यार, क्यों आखिर 
अब नहीं, पक्का अब नहीं ...
नो, नॉट अगेन ...
कल कहा था न, अश्क़, इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते और सरे आम बहने लगते है।
अश्क़ मेरे से नहीं छिपते, मुश्क़ तुम लगाये फिरते हो
और हमारा इश्क़ ...
वह तो जगजाहिर है ...
है न ...
पता है, तुम्हें ? जब तुम्हारी कल वापिसी होगी
मैं फिर से ' मैं ' बन जाऊँगी और तुम्हें देव से फिर ' तुम ' बना दूँगी ...
दिल की बात न पूछो
दिल तो आता रहेगा
दिल बहकाता रहा है, दिल बहकाता रहेगा ...
- निवेदिता दिनकर
  06/04/2017
तस्वीर : उर्वशी दिनकर के सौजन्य से 

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